Saturday, July 10, 2010

सफ़र जिंदगी का

जिंदगी के सफ़र में कांटे है कई।
चुब ते रहे वो, फिर भी चलते रहे हम यूँही।
ठोकर खाए, गिरते रहे
फिर भी उठ कर चलते रहे, संभलना हमने सिखा।
हर मोड़ पर, आँखे खोल कर जिंदगी को नए नजरिये से देखना सिखा।
जिंदगी की सिख थी यही, आगे चल ते जाना है तुझे।
मंजिल का पता नहीं पर रास्ता बनाते जाना है तुझे।
रूकावटे होंगी, दीवारें होंगी, फिर भी तुझे चल ते जाना है।
जिंदगी के इस सफ़र में, हर मोड़ पर कामयाबी का एक फूल खिलाना है॥

1 comment:

  1. An experiential poem. Is it true that we learn only after we suffer??? Y cant we get this learning of "हर मोड़ पर, आँखे खोल कर जिंदगी को नए नजरिये से देखना सिखा।" from the begining itself?? May be that's why its called LIFE! Teaches us by the way we are supposed to LEARN!

    Keep posting!

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